नोएडा : आज शहर में कुछ साथियों की मदद और हालचाल जानने के लिए कई जगह आना जाना हुआ तो रास्ते में कई पथ विक्रेता दुकानदार साथी जहां तहां मिल गए जो अपनी ठेली पर फल सब्जी लिए खड़े थे मैंने पूछा कि लॉक डाउन चल रहा है कैसे लगा रहे हो तो कहने लगे करोना तै मरेंगे कि नहीं भूख से जरूर मर जाएंगे एक दुकानदार ने कहा कॉमरेड जी गरीब आदमी क्या करें हमारा हाल तो यह है कि आज कुछ कमा लेंगे तो शाम को खा लेंगे, ठेली पटरी दुकानदार हरी गुप्ता से बात हुई तो उनका दर्द छलक आया कहने लगे हमें तो नोएडा प्राधिकरण ने पहले से ही तबाह कर रखा था काम धाम करने नहीं दे रहे हैं तो अब तो बड़ी ही मुश्किल हो गई है घर में पत्नी बीमार रहती है उसका इलाज भी कराना है और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी करना है तो डरते डराते नोएडा फेस 2 मंडी पहुंचा तो मंडी में शिमला मिर्च ₹80 से ₹100 किलो, प्याज 25 से 28 रुपए किलो, टमाटर ₹30, आलू ₹25, अनार 120 से 140 रुपए किलो, केला 50 से ₹60 दर्जन थोक में रेट था थोड़ा थोड़ा सामान लाया था यहां ग्राहक कह रहे हैं कि तुम तो लूट रहे हो तो आप ही बताएं हम इसमें क्या करें जैसा हमें पीछे से मिला उसी आधार पर हम यहां फुटकर में बेच रहे हैं।
हम अपनी टीम के साथियों के साथ सीटू कार्यालय सेक्टर 8 नोएडा से राहत सामग्री लेकर सेक्टर 93 मालदा बंगाल के दिहाड़ी मजदूर जो झुग्गी बस्ती में रहते हैं उन्हें आटा चावल दाल तेल आदि खाद्य सामग्री वितरित करने जा रहे थे तो रास्ते में हाईवे पर परी चौक की ओर अपने दूरदराज गांवों को प्लान करते बड़ी संख्या में मजदूर मिले उनसे भी बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि क्या करें यहां भूखे मरने की नौबत आ गई है कोई साधन नहीं मिल रहा इसीलिए पैदल ही अपने गांव जा रहे हैं।
बरौला सेक्टर 49 नोएडा लेबर चौक, हरौला सेक्टर 5 लेबर चौक, खोड़ा लेबर चौक आदि कई स्थानों पर प्रत्येक रोज निर्माण मजदूरों का मजमा लगता है ऐसे स्थानों पर मजदूर अपने खाने के टिफन के साथ सुबह आ जाते हैं कि कोई मकान बनाने वाला मालिक या ठेकेदार आएगा वह उसे दिहाड़ी पर ले जाएगा अब यह चौक वीरान पड़े हैं बरौला लेबर चौक के नजदीक इक्का-दुक्का मजदूर नजर आए तो उनसे बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि पुलिस यहां पर रुकने नहीं दे रही है और काम पर ले जाने वाला भी कोई नहीं आ रहा है उन्होंने बताया कि काम की तलाश में ही घर से बाहर निकले थे शायद कोई काम मिल जाए साहब क्या करें मजदूरी नहीं मिलेगी तो खाएंगे क्या?
समझ सकते हैं राज्य में लाखों मजदूरों के हालात को ? उनके परिवार का कोई सदस्य यहां नहीं हैं, काम बंद हो गए हैं। क्या यह राज की जिम्मेदारी नहीं बनती कि जो मजदूर देश का निर्माता है आज वह भुखा न मरें। यही तो बात की थी माननीय प्रधानमंत्री ने जब पहली बार संसद में दहाड़े थे। श्रमेव जयते अर्थात श्रम की जीत हो यही कहा था। माननीय ने 24 मार्च को रात 8 बजे 21 दिन के लाॅक डाउन की घोषणा कर दी। सही है इस हालात के नियंत्रण के लिए जरूरी है। और हम सब सरकार द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का पालन कर रहे हैं और पालन करना भी चाहिए परन्तु करोड़ों की आबादी को भुख से बचाने के लिए! क्या वह नहीं समझ सकते हैं कि इस लॉक डाउन के उस तबके पर पड़ रहे प्रभाव को जिसका चुल्हा दैनिक दिहाड़ी पर चलता है। 40 करोड़ मजदूर आबादी में से अधिकतर की यही हालात हैं। कुल मजदूरों का आज 93 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करता है। उसका जीवन कैसे चलेगा? इन्ही की सरकार नेआर्थिक मंदी के चलते बड़े कारपोरेटस के लिए 7.78 लाख करोड़ के बैल आउट पैकैज की घोषणा कर दी थी। 1.76 लाख करोड़ की टैक्सों में छूट दी थी यह तो 7-8 महीने पहले की ही बात है। और करोड़ों लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए क्या?
नोएडा गौतम बुध नगर दिल्ली एनसीआर में अधिकतर प्रवासी मजदूर है। रेल-बस सेवा बंद है, घर जा नहीं सकते आखिर क्या करें? सरकार ने जो राहत पैकेज की घोषणा कि है इनमें से किसी को भी यह नहीं मिलने वाली। क्योंकि न ये रजिस्टर्ड है और न इनके बीपीएल कार्ड। निर्माण मजदूरों को आर्थिक मदद उनके खाते में डालने की बात कही गई है वे भी जो रजिस्टर्ड हैं। यह पैसा सरकार का नहीं है बल्कि इन मजदूरों के बोर्ड का है जो निर्माण कार्यो के सैस से इकटठा होता है। अब राज्य में निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में जिले में राज्य में बड़ी संख्या में निर्माण मजदूर हैं इनमें बहुमत प्रवासी है जिनमे से बहुमत का रजिस्ट्रेशन भी बहुत कम है। इनकी हालात क्या होगी? इन तक सहायता कैसे पंहुचेगी?
रेहड़ी-पटरी मजदूरों को भी आर्थिक मदद देने की बात की है। जो रजिस्टर्ड है उनको लेकिन कितने हैं, कितनों के खाते हैं। शायद 10 फसदी भी नहीं । रिक्शा चालकों के लिए आर्थिक मदद देने की बात है कहा है कि उपायुक्त/एडीएम कार्यालय में फार्म भरना पड़ेगा। आपने घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी, कह रहे हैं फार्म भरना पड़ेगा। क्या इनके भी सबके बैक खाते हैं? फेक्ट्री मजदूरों के 70 फीसदी का कहीं नाम ही दर्ज नहीं मिलेगा। उनका क्या होगा? आप याद किजिए सघन मजदूर बस्तियों, औद्योगिक क्षेत्रों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों के पास चाय बेचने वाले, रेहड़ी पर खाना बनाने वाले, सामान बेचने वाले, उनका घर कैसे चलेगा। क्या वें कहीं सरकार के रिकार्ड में दर्ज हैं? अलग-अलग दुकानों पर काम करने वाले, वर्कशाप में काम करने वाले यहां तक ढाबों व होटलों में काम करने वाले भी भुखे ही मरेंगे।
इसलिए बिना कोई किन्तु-परन्तु किए जो भी जरूरतमंद है उनकी पहचान की जाए। प्रथम काम राज्य सरकार व मशीनरी का बनता है कि उन तक राशन व नकदी पंहुचाए ताकि भुख से बचें। इसमें ट्रेड यूनियनों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद ली जा सकती है। वरना "कोरोना से बच भी जाएं, भुख से जरूर मर जाएगें।