वेदों में कहा गया है कि…. 


मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: गुरु देवो भव: अतिथि देवो भव:। 


हमारे शास्त्रों में सूत्र संकेतों के रूप में हैं जिन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए। 


अभिवादन शीलस्य नित्य 


वृद्धोपसेविन:। 


चत्वारि तस्य वर्धते, 


आयुर्विद्या यशो बलं॥ 


अर्थात मात्र प्रणाम करने से, सदाचार के पालन से एवं नित्य वृद्धों की सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है। भगवान श्रीगणेश अपने माता-पिता में त्रैलोक समाहित मान कर उनका पूजन और प्रदक्षिणा (चक्कर लगाना) करने से प्रथम पूज्यनीय बन गए। यदि हम जीवों के प्रति परोपकार की भावना रखें तो अपनी कुंडली में ग्रहों की रुष्टता को न्यूनतम कर सकते हैं। 


नवग्रह इस चराचर जगत में पदार्थ, वनस्पति, तत्व, पशु-पक्षी इत्यादि में अपना वास रखते हैं। इसी तरह ऋषियों ने पारिवारिक सदस्यों और आसपास के लोगों में भी ग्रहों का प्रतिनिधित्व बताया है। माता-पिता दोनों के संयोग से किसी जातक का जन्म होता है इसलिए सूर्य आत्मा के साथ-साथ पिता का प्रतिनिधित्व करता है और चंद्रमा मन के साथ-साथ मां का प्रतिनिधित्व करता है। 


योग शास्त्र में दाहिने स्वर को सूर्य और बाएं को चंद्रमा कहा गया है। श्वास ही जीवन है और इसको देने वाले सूर्य और चंद्र हैं। योग ने इस श्वास को प्राण कहा है। आजकल ज्योतिष में तरह-तरह के उपाय प्रचलित हैं परन्तु व्यक्ति के आचरण संबंधी और जीव के निकट संबंधियों से जो उपाय शास्त्रों में वर्णित हैं कदाचित वे चलन में नहीं रह गए हैं। 


यदि कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में हो, नीच का हो, पीड़ित हो तो कर्मविपाक सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि पिता रुष्ट रहे होंगे तभी जातक सूर्य की अशुभ स्थिति में जन्म पाता है। सूर्य के इस अनिष्ट परिहार के लिए इस जन्म में जातक को अपने पिता की सेवा करनी चाहिए और प्रात: उनके चरण स्पर्श करे और अन्य सांसारिक क्रियाओं से उन्हें प्रसन्न रखें तो सूर्य अपना अशुभ फल कम कर सकते हैं। 


यदि सूर्य ग्रह रुष्ट हैं तो पिता को प्रसन्न करें, चंद्र रुष्ट है तो माता को प्रसन्न करें, मंगल रुष्ट है तो भाई-बहन को प्रसन्न करें, बुध रुष्ट है तो मामा और बंधुओं को प्रसन्न करें, गुरु रुष्ट है तो गुरुजन और वृद्धों को प्रसन्न करें, शुक्र रुष्ट है तो पत्नी को प्रसन्न करें, शनि रुष्ट है तो दास-दासी को प्रसन्न करें और यदि केतू रुष्ट है तो कुष्ठ रोगी को प्रसन्न करें। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार यदि हम प्रेम-सत्कार और आदर का भाव रख कर ग्रहों के प्रति व्यवहार करें तो रुष्ट ग्रह की नाराजगी को शांत किया जा सकता है। 


कुंडली में बुध कमजोर हो तो क्या करें :-


 घर में तुलसी का पौधा लगाएं, बुधवार के दिन तुलसी पत्ते को प्रशाद के रूप में ग्रहण करें। 


 बुधवार के दिन हरे रंग की चूडियां हिजड़े को भेंट स्वरूप दें। 


 हरी सब्जी अथवा दाल पकाएं। 


 हरा चारा गाय को खिलाएं। 


 बुधवार के दिन गणेश जी के मंदिर में जाए प्रणाम करने के उपरांत मोदक का भोग लगाएं तथा बच्चों में बांट दें। 


 तोता पालने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है। 


 प्रत्येक बुधवार को ॐ बुं बुधाय नम: के जाप की 2 माला करें। 


 पांच बुधवार तक पांच कन्याओं को हरे वस्त्र दान करें। 


 बुधवार के दिन उपहार आदि में बुध से संबंधित वस्तुएं ना लें। 


 प्रति बुधवार गरीबों को हरे मूंग का दान करें। 


 प्रति बुधवार व्रत-उपवास करें। 


 आपकी कुंडली के अनुसार ज्योतिषी से सलाह लेकर बुध का रत्न व पन्ना धारण कर सकते हैं। 


१४. कुंडली और मंगल ग्रह :-


विवाह संबंधों में मंगल दोष प्रमुख व्यवधान होता है और कई बार अज्ञानतावश भी मंगल वाली कुंडली का हौआ बना दिया जाता है और जातक का विवाह हो ही नहीं पाता। मंगल स्वभाव से तामसी और उग्र ग्रह है। यह जिस स्थान पर बैठता है उसका भी नाश करता है जिसे देखता है उसकी भी हानि करता है। केवल मेष व वृश्चिक राशि (स्वग्रही) में होने पर यह हानि नहीं करता। जब कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में हो तो पत्रिका मांगलिक मानी जाती है। 


* प्रथम स्थान का मंगल सातवीं दृष्टि से सप्तम को व चतुर्थ दृष्टि से चौथे घर को देखता है। इसकी तामसिक वृत्ति से वैवाहिक जीवन व घर दोनों प्रभावित होते हैं। 


* चतुर्थ मंगल मानसिक संतुलन बिगाड़ता है, गृह सौख्य में बाधा पहुँचाता है, जीवन को संघर्षमय बनाता है। चौथी दृष्टि से यह सप्तम स्थान यानी वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। 


* सप्तम मंगल जीवनसाथी से मतभेद बनाता है व मतभेद कई बार तलाक तक पहुँच सकते हैं। 


* अष्टम मंगल संतति सुख को प्रभावित करता है। जीवन साथी की आयु कम करता है। 


* द्वादश मंगल विवाह व शैय्या सुख को नष्ट करता है। विवाह से नुकसान व शोक का कारक है। 


 कब नष्ट होता है यह दोष :- 


* मंगल गुरु की शुभ दृष्टि में हो 


* कर्क व सिंह लग्न में (मंगल राजयोगकारक ग्रह है।) 


* उच्च राशि (मकर) में होने पर। 


* स्व राशि का मंगल होने पर 


* शुक्र, गुरु व चंद्र शुभ होने पर भी मंगल की दाहकता कम हो जाती है। 


* पत्रिका मिलान करते समय यदि दूसरे जातक की कुंडली में इन्हीं स्थानों पर मंगल, शनि या राहु हो तो यह दोष कम हो जाता है 
कुंडली और ग्रह दोष :-


बजरंगबली की आराधना से आप खुशियों का वरदान पा सकते हैं। मंगलवार को बजरंगबली की पूजा के लिए बेहद उत्तम माना गया है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो बजरंगबली की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। 


 धन का संचय न हो पा रहा हो अथवा घर में बरकत न हो पा रही हो तो लाल चंदन, लाल गुलाब के फूलों एवं रोली को लाल कपड़े में बांध कर एक सप्ताह के लिए घर पर बने बजरंगबली के मंदिर में रख दें। एक सप्ताह पश्चात उस कपड़े को घर की तथा दुकान की तिजोरी में रख दें। 


 हनुमान चालिसा का पाठ करने से मन को शांति प्राप्त होती है और मानसिक तनाव दूर होता है। 


 ज्योतिष के मतानुसार बजरंगबली के भक्तों को शनि की साढ़सती और ढैय्या में अशुभ प्रभाव नहीं झेलने पड़ते। बजरंगबली का नाम सिमरण करने मात्र से आप जीवन में आ रही तमाम समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। 


 बजरंगबली को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पण करने से वह बहुत प्रसन्न होते हैं और शीघ्र ही अपने भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। 


 मंगलवार के दिन पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ कर उन्हें शुद्ध जल से साफ करें। कुमकुम, अष्टगंध और चंदन मिलाएं। किसी बारीक तीले से श्री राम का नाम उन पत्तों पर लिखें। नाम लिखते समय हनुमान चालिसा का पाठ करें। इसके बाद श्रीराम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं और बजरंगबली के मंदिर में जाकर बजरंगबली को पहनाएं। ऐसा करने से जीवन में आने वाली समस्त समस्याओं का समाधान होगा। 


जन्म कुंडली में बृहस्पति खराब हो :-


महिलाओं का जीवन उनके पति बच्चों और घर -गृहस्थी में सिमटा होता है। जन्म कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो वह महिला को स्वार्थी, लोभी और क्रूर विचार धारा की बना देता है। दाम्पत्य जीवन में दुखों का समावेश होता है और संतान की ओर से भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पेट और आंतों के रोग हो जाते हैं। अगर जन्म- कुंडली में बृहस्पति शुभ प्रभाव दे तो महिला धार्मिक, न्याय प्रिय, ज्ञानवान, पति प्रिया और उत्तम संतान वाली होती है। ऐसी महिलाएं विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है। 


कुछ कुंडलियों में बृहस्पति शुभ होने पर भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने समक्ष सभी को तुच्छ समझती है क्योंकि बृहस्पति के शुभ होने पर उसमें ज्ञान की सीमा नहीं रहती। वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने लगती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्योंकि उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है 


यही अहंकार उस में मोटापे का कारण भी बन जाता है। वैसे तो अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी मोटापा आता है मगर बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से मोटापा अलग ही पहचान में आता है यह शरीर में थुल थूला पन अधिक लाता है क्योंकि की बृहस्पति शरीर में मेद कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है। 


कमजोर बृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है मगर किसी ज्योतिष की राय ले कर। गुरुवार का व्रत करें, सोने का धारण करें,पीले रंग के वस्त्र पहनें और पीले भोजन का ही सेवन करें। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी बृहस्पति अनुकूल होता है। 


उग्र बृहस्पति को शांत करने के लिए बृहस्पति वार का व्रत करना, पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए। केले के वृक्ष की पूजा करें और विष्णु भगवान् को केले का भोग लगाएं और छोटे बच्चों, मंदिरों में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए। 


अगर दाम्पत्य जीवन कष्टमय हो तो हर बृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देसी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाएं। कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही बृहस्पति को चपाती पर गुड की डली रख कर गाय को खिलानी चाहिए और सबसे बड़ी बात यह के झूठ से जितना परहेज किया जाय, बुजुर्गों और अपने गुरु,शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जायेगा उतना ही बृहस्पति अनुकूल होता जायेगा। 


विभिन्न लग्नों के लिए राजयोग ग्रह :-


कुछ ग्रह लग्न कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ योग बनाते हैं जो व्यक्ति को धन, यश, मान, प्रतिष्ठा सारे सुख देते हैं। 
विभिन्न लग्नों के लिए राजयोगकारी ग्रह निम्न हैं। 
1. मेष लग्न के लिए गुरु राजयोग कारक होता है। 
2. वृषभ और तुला लग्न के लिए शनि राजयोग कारक होता है। 
3. कर्क लग्न और सिंह लग्न के लिए मंगल राजयोग कारक होता है। 
4. मिथुन लग्न के लिए शुक्र अच्छा फल देता है। 
5. वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा अच्छा फल देता है। 
6. धनु लग्न के लिए मंगल राजयोग कारक है। 
7. मीन लग्न के लिए चंद्रमा व मंगल शुभ फल देते हैं। 
8. मकर लग्न के लिए शुक्र योगकारक होता है। तो कुंभ लग्न के लिए शुक्र और बुध अच्छा फल देते हैं। कन्या लग्न के लिए शुक्र नवमेश होकर अच्छा फल देता है। 
जो ग्रह एक साथ केंद्र व त्रिकोण के अधिपति होते हैं, वे राजयोगकारी होते हैं। ऐसा न होने पर पंचम व नवम के स्वामित्वों की गणना की जाती है। 
यदि कुंडली में ये ग्रह अशुभ स्थानों में हो, नीच के हो, पाप प्रभाव में हो तो उनके लिए उचित उपाय करना चाहिए।
आपके जीवन के हर कार्य से जुड़े है और यदि ये आपके पक्ष में है तो आपको किसी भी तरह से कभी भी कोई परेशानी नही उठानी पड़ेगी और आपको आपके हर कार्य में सफलता जरुर प्राप्ति होगी. आपकी कुंडली में नौकरी से सम्बंधित ग्रह योग के बारे में ही आज हम आपको कुछ जरूरी बाते बताना चाहेंगे.
1. जब आपकी कुंडली के 10 भाव में मंगल मकर राशि हो तब आपको एक अच्छी सरकारी नौकरी की प्राप्ति होगी.
2. अगर आपकी राशी में मंगलवार बलवान होकर 1, 4, 7, 10 वे भाव में से किसी भी भाव में हो या फिर 5 या 9 वे भाव में भी होंगे तब भी आपको एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति होगी.
3. यदि आपकी कुंडली में मंगल स्वराशि में या फिर मित्र राशी का होकर 10 वे भाव में हो तो आपको आपकी नौकरी में तरक्की मिलेगी.
4. जिन पुरुषो की कुंडली में 8 वे भाव के अतिरिक्त अन्य किसी भाव में उच्च राशी का हो, तो उन लोगो को भी अच्छी नौकरी की प्राप्ति जरुर होगी.
5. और अगर आपकी कुंडली में 10 वे भाव में सूर्य हो, साथ ही गुरु उच्च राशी में, स्वराशि में या मित्र राशी में हो तो इससे भी आपके जीवन में एक अच्छी सरकारी नौकरी के योग बनते है.
6. यदि आपकी कुंडली के केंद्र में किसी उच्च राशी का ग्रह विद्यमान हो और उसके साथ साथ आपकी कुंडली के केंद्र पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टी हो या फिर आपकी कुंडली के 10 वे भाव में किसी शुभ ग्रह का वास हो या फिर उसकी दृष्टी भी हो तो इससे भी आपके नौकरी में ऊँचे पद की सम्भावना बढती है.
7. अगर आपकी कुंडली में लग्नेश की लग्न पर दृष्टी हो या फिर मंगल की दशमेश में युति हो तो इस तरह से भी आपको अच्छी नौकरी की सम्भावना बढती है.
8. इसके अलावा भी अगर आपके लग्नेश या दशमेश में युति हो तब भी आपको एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति होगी.
तो एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति के लिए आपको अपनी कुंडली के इन ग्रहों और योगो को ध्यान में रखना जरूरी होता है, आपको एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति जरूर हो ।