आशीष तिवारी की कलम से पत्रकरिता अपने आप मे एक जोखिम भरा व्यवसाय है जिसमें जान माल के जोखिम के साथ साथ आर्थिक संकट भी ताउम्र पत्रकार का पीछा नही छोड़ता। सामान्यतः साधारण पत्रकार का जीवन तमाम जोखिम और अनिश्चितताओ से भरा रहता है। फिर चाहे वह संवाददाता हो, डेस्क पर कार्य करने वाला संपादकीय विभाग का मीडिया कर्मी हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का क्षेत्रीय संवाददाता या कैमरा मैन, सभी की पीड़ा और परेशानियां एक सी ही हैं। दुनिया की समस्यायों को उजागर करने वाला मीडिया कर्मी अपने जीवन की दुश्वारियों और दर्द की छटपटाहट को दूर करने के लिए आवाज नही उठा पाता। कुछ गिने चुने मुख्य पदों पर बैठे मीडिया कर्मियों का जीवन स्तर और आय के साधन ,उनका वेतन एवं सेवा शर्तें आदि मात्र संतोषजनक हो सकते है, परंतु क्षेत्र में विस्तृत रूप से जमीनी स्तर तक संवाददाताओं ,पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्ट की जो फौज काम करती है,वो नितांत कठिनाई भरा हुआ जीवन जीते हुए इस पेशे की चुनौतियों से रोज रूबरू होती हैं ।
भारत वर्ष में पत्रकारिता का जन्म भी आजादी के संघर्ष के उस दौर में हुआ जहां पत्रकारिता करना किसी जंग को लड़ने से कम कार्य नही था। इस देश मे पत्रकारिता का जन्म और उसकी परवरिश ही जोखिम और चुनौतियों के बीचहुयी है। चूंकि आजादी के आंदोलन के दौर में जन्मी पात्रकारित एक पुनीत मिशन थी तो आर्थिक संकट और जान का जोखिम होना तो लाजिमी था ही,आज इस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट की सुगमता के युग मे तकनीकी रूप से पत्रकार मजबूत हुआ है। उनकी गति,उनकी पहुंच और क्षमताओं का तो व्यापक विस्तार हुआ है लेकिन व्यावसायिक प्रतियोगिता का स्तर कण्ठकाट प्रतियोगिता तक पहुंच गया है ।परंतु जब हम उनके जीवन और व्यावसायिक चुनौतियों को देखते हैं तो वह आज भी उतनी ही गंभीर है। पत्रकार वहां कलम और कैमरा लेकर रिपोर्टिंग कर रहा होता है जहां पुलिस और सेना का जवान ए.के. 47 हाथ मे लेकर भी महफूज महसूस नही करता। उस भीषण त्रासदी और आपदा के दौर में भी आपको पल पल की खबर जान जोखिम में डालकर देता है जहां सेना को राहत और बचाव कार्य करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसमें भी सबसे खास बात यह है कि सेना हो या पुलिस उनके पास साधन, संसाधन और अधिकार होते हैं उन परिस्थितियों से निपटने के लिए ।लेकिन वहीं उसी माहौल में निहत्थे हाथ मे कलम, कैमरा, या मोबाइल पकड़कर काम करने वाले पत्रकार पर ना तो कोई साधन संसाधन होते हैं ना ही कोई विशेष अधिकार। उल्टे शासन, प्रशाशन के उस तंत्र का विरोध झेलकर खबर को करके लाना होता है। इसलिए आज आवश्यकता है इस क्षेत्र को संगठित रूप प्रदान करने की।आम जन मानस की आवाज को बुलंद करने वाले तबके को आवाज उठानी होगी। वकील,सी.ए. तथा डॉक्टर आदि पेशों की तरह इस क्षेत्र में भी पंजीकरण की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे कि वास्तविक पत्रकारों को भी चिन्हित किया जा सके और उनके लिए लाभकारी योजनाएं,कानून तथा तंत्र भी विकसित हो सके। पंजीकरण की प्रक्रिया और मानक तय होने चाहिए। अन्य पेशों की तरह मीडिया कर्मियों के रोजगार और जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए एवं अन्य व्यावसायों की तरह बीमा,आर्थिक सहायता, भत्ते व स्वास्थ्य सुविधायें तथा श्रमजीवी पत्रकारों के लिए सरकारी सेवाओं की भांति सेवा लाभ और वेतन आदि को निर्धारित किया जाना चाहिए एक निश्चित अवधि की सेवा के बाद सेवा को स्थायी रूप प्रदान किया जाना चाहिए। अधिवक्ताओं की भांति पत्रकारों के लिए प्रत्येक जिले में एवं प्रदेश स्तर पर कल्याण कोष बनाये जाने चाहिए। मीडिया कर्मियों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रेस परिषद के अतिरिक्त मीडिया आयोग भी बनाया जाना चाहिए। पत्रक़ारिता के जोखिम और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए पत्रकारों को कुछ विशेष अधिकार प्रदान किये जाने चाहिए l मेडिकल फील्ड की तर्ज पर मीडिया प्रोटेक्शन एक्ट बनाया जाए जिससे कि इस जोखिम भरे क्षेत्र में आने वाले मीडिया कर्मियों को सामाजिक, आर्थिक एवं जीवन संबंधी सुरक्षा प्राप्त हो सके ।